वह बच्चा

दिन गुज़र जाते है पर किस्से और लोग याद रह जाते है ।हर दिन कोई ना कोई कहानी जन्म लेती है बस उस कहानी को कोई सुनाने वाला चाहिए ।

बात कुछ दिनों पहले की थी लगभग दिवाली का समय था । जैसा आप सभी जानते है की दिवाली की सफ़ाई और तैयारी महीनों पहले ही शुरू हो जाती है ।

मैं भी बड़े ज़ोर शोर से तैयारी में लगी हुई थी । घर साफ़ करने के बाद जिस चीज़ में मुझे मज़ा आता है वह है शिपिंग । चाहे घर पे चीज़ें होती है पर दिवाली पर वही चीज़ नई आती है ।मैंने कुछ ऑनलाइन शॉपिंग की और बहुत सी बाज़ार जाकर क्यूँकि दिवाली में बाज़ार की रौनक देखने से ही बनती है ।

वैसे तो अक्सर मैं अपने प्राणप्रिय के साथ शिपिंग करती हूँ पर इस बार उनकी व्यस्थता के कारण मैंने दिए गए अवसर का अकेले भरपूर आनंद लिया । मार्केट हर रोज़ की तरह ११ बजे तक खुलता था । मैंने भी अर्ली लंच करके , बैग में सामान की लिस्ट , सनग्लासेस और पर्स डालकर मार्केट की ओर निकल पड़ी । मार्केट पास में ही था तो पैदल चलकर १० मिनट में जब पहुँची तो वहाँ पहले से ही बहुत भीड़ थी ऐसा लगा जैसे सेल चल रही होगी । अपने आसपास जगमगाते हुए चहरों को देख , मैंने भी अपने चहरे में बैठी हुए मुस्कान को कुछ इंच और फैलाया और बैग से लिस्ट निकाल कर देखने लगी की कहाँ से शुरुवात करूँ ।

रंगबिरंगी लड़िया , मिट्टी के दीये, लक्ष्मी गणेश की मूर्ति , आम और फूलो की मालाएँ ,खिल पताशे, एरोमेटिक कैंडल्स ,रंगोली के रंग सब बैग में डाल कर मैं घर की तरफ़ चलने लगी तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरे बैग में मेरा पर्स नहीं था । उसमे मेरा मोबाइल फ़ोन , डेबिट कार्ड्स और कुछ कैश था । मुझे लगा हो गई हैप्पी दिवाली । चलो वापस मार्केंट में , ढूँढ लेते है मिल गया तो ठीक वरना कार्ड्स और मोबाइल नंबर को ब्लॉक कराना पड़ेगा । मार्केट में मैं हर एक दुकान में गई जहाँ जहाँ से मैंने सामान लिया था पर हर दुकान दार ने मना कर दिया । मुझे बड़ी निराशा हुई और मैंने घर लौट कर नंबर ब्लॉक और कार्ड ब्लॉक का सोचा । जैसे ही मैं घर की तरफ़ मुड़ी मेरे पीछे से एक मासूम सी आवाज़ आई आंटी क्या आप इसे ढूँढ रहे हो उसके हाथ में अपना वॉलेट देख मेरी जान में जान आई । मैंने झट से बच्चे के हाथ से पर्स झटक लिए ( ऐसा मैंने क्यों किया ?) और आँखें बंद करके भगवान को धन्यवाद दिया ।मैंने जैसे ही आँख खोली बच्चा वहाँ से गायब हो गया था । बच्चे के गायब होते ही मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ , की मुझे ऐसे रियेक्ट नहीं करना चाहिए था पर ये मानव स्वभाव है की अगर वही बच्चा ग़रीब का ना होकर किसी मध्यमवर्गीय का होता तो शायद मैं उसको गले लगा लेती ।पर्स मिलने की ख़ुशी तो थी पर मन में एक बोझ , बहुत डूँढने पर भी वह बच्चा दिखायी नहीं दिया । फिर वही मानव स्वभाव की भगवान की जैसी मर्जी और मेरे कदम घर की ओर बढ़ चले ।

Comments

  1. Wah bahut khoob

    ReplyDelete
  2. Intricacies of human behavior is beautifully narrated...

    ReplyDelete
    Replies
    1. It’s the behaviour that makes us good or bad

      Delete

Post a Comment

Popular Posts