मेरी अभिव्यक्ति



माँ ने आज़ादी तो दी पर यह नहीं बताया,

जंगल में भेड़िये भी है जिनका रहेगा हमेशा मुझ पर साया  ,

गिद्ध से मानव रहेंगे हमेशा मुझ  पर नज़रे गड़ाए, 

नोच डालेंगे वो मुझे  जब भी उन्होंने मौके को पाया I 


शिक्षित मनुष्य, असभयता फैलाएंगे ,

घृणा ,हिंसा ,दुराचार  करेंगे तांडव और अपना परचम लहरायेंगे I


छोड़कर इंसानियत  हमने तर्रकी  बहुत  कर ली ,

अशिष्टता  में लेकर उपाधि ,हैवानियत की सारी हदें पार हमने  कर दी,

पहले फूलों को थे मसलते ,अब कलियों को भी रोंदते हैं,

अंधकार के दानव अब दिनदहाड़े घुमते हैं I


माँ मैं तुझसे पूछती हूँ,मान मर्यादा का पाठ जो बचपन में  तू मुझको थी बताती ,

क्या वो पाठ भैया को तू ने भी  है सिखलाया ?

तू बोलती थी लड़कियां घर की इज़्ज़त की ठेकेदार हैं ,

क्या आज भी लड़को के  लड़कियों से ज़यादा अधिकार हैं?


जब रचना ने मानव को एक जैसा हैं बनाया I

तो कौन है हम भेद करते ,मेरी समझ में ये ना  आया I


माँ आज तुझे  बतलाती हूँ  मैं , 

वो समय दूर नहीं जब  नाग अपना फन फिर से  फेहलायेगा,  

हैं तेरी कसम अब वो न ऐसा कर पायेगा ,

 क्यूंकि नाग के फन उठाने से पहले  अब वो कुचला जायेगा,

नाग के फन फेहलाने से पहले वो अब  कुचला जायेगा I 

Comments

  1. I really enjoy reading your blog. This was a poignant poem.

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  2. अदभुत! पता नहीं था कि आप हिंदी में भी इतनी सुंदर कविता लिखती हैं।👍👍

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    1. मुझे भी नहीं पता था ❤❤❤🙏

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  3. मुझे आज पता चल गया 😄✌

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